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अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर श्रमिकों के अधिकारों और सरकारी योजनाओं की वर्तमान स्थिति

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गोरखपुर / अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस हर वर्ष 1 मई को दुनिया भर में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य श्रमिकों के योगदान को सम्मान देना और उनके अधिकारों के प्रति समाज को जागरूक करना होता है। यह दिन मजदूर वर्ग के संघर्ष और उपलब्धियों का प्रतीक है। भारत में भी यह दिवस विशेष महत्व रखता है, विशेषकर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के लिए।

सरकार द्वारा चल रही प्रमुख श्रमिक योजनाएं

भारत सरकार द्वारा श्रमिकों के कल्याण हेतु अनेक श्रमिक कल्याण योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य है – श्रमिकों को स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और रोजगार के अवसर प्रदान करना। गोरखपुर जनपद के नवगठित विकास खंड भरोहिया के खंड विकास अधिकारी अरुण कुमार ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान में कई प्रभावी योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं, जिनमें मुख्य रूप से शामिल हैं:

  • मातृत्व, शिशु एवं बालिका मदद योजना – इस योजना के अंतर्गत श्रमिक परिवारों की महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सहायता प्रदान की जाती है।
  • संत रविदास शिक्षा प्रोत्साहन योजना – श्रमिकों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
  • कन्या विवाह सहायता योजना – इस योजना के माध्यम से श्रमिकों के पुत्रियों के विवाह हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जाती हैं।
  • अटल आवासीय विद्यालय योजना – श्रमिकों के बच्चों को मुफ्त आवासीय शिक्षा प्रदान की जाती है।
  • गंभीर बीमारी सहायता योजना – श्रमिकों को गंभीर बीमारियों के उपचार में आर्थिक सहायता दी जाती है।
  • निर्माण कामगार मृत्यु एवं दिव्यांगता सहायता योजना – निर्माण कार्यों में लगे श्रमिकों की दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में उनके परिवार को आर्थिक सहायता दी जाती है।
  • श्रमिक पेंशन योजना – पात्र श्रमिकों को वृद्धावस्था में नियमित पेंशन प्राप्त होती है।

मनरेगा योजना और रोजगार अधिकार

खंड विकास अधिकारी ने यह भी बताया कि कोई भी वयस्क नागरिक मनरेगा जॉब कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है। यह कार्ड उसे 100 दिन का वार्षिक रोजगार प्राप्त करने का अधिकार देता है। यह योजना ग्रामीण गरीबों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। मनरेगा योजना के माध्यम से श्रमिकों को न केवल रोजगार मिलता है, बल्कि वे अपनी आर्थिक स्थिति भी सुधार सकते हैं।

मजदूरों में जागरूकता की कमी एक बड़ी चुनौती

हालांकि योजनाएं और कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है, लेकिन मजदूरों में जागरूकता की कमी एक गंभीर समस्या बनकर उभर रही है। जब मीडिया ने कुछ श्रमिकों से अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाही, तो कई मजदूरों ने यह स्वीकार किया कि वे इस दिवस के बारे में नहीं जानते। यह दिखाता है कि योजनाएं और अधिकार तभी प्रभावी होंगे जब उनका व्यापक प्रचार-प्रसार हो।

जागरूकता अभियान की आवश्यकता

सरकार को चाहिए कि वह श्रमिकों के अधिकारों और सरकारी योजनाओं के बारे में अधिक से अधिक जागरूकता अभियान चलाए, ताकि मजदूर अपने हक की जानकारी प्राप्त कर सकें और उसका लाभ उठा सकें। पंचायत स्तर से लेकर ब्लॉक और जिला स्तर तक जनजागरूकता शिविर आयोजित किए जाने चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस न केवल एक प्रतीकात्मक दिवस है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जब हमें मजदूरों के संघर्ष, उनकी समस्याओं और उनके योगदान को सम्मान देने की आवश्यकता है। जब तक प्रत्येक मजदूर को उसकी मेहनत का पूरा फल और अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक समाज में समानता और न्याय की बात अधूरी रहेगी। सरकार, समाज और स्वयं मजदूरों को मिलकर इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।

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पीपीगंज नगर पंचायत में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, जिम्मेदारों पर उठे रहे सवाल

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गोरखपुर जिले के नगर पंचायत पीपीगंज में एक बेहद शर्मनाक मामला सामने आया है। यहां के निर्माणाधीन नगर पंचायत कार्यालय परिसर में लगा राष्ट्रीय तिरंगा झंडा कई दिनों से फटा हुआ है, लेकिन स्थानीय प्रशासन की नजर इस पर नहीं पड़ी है। तेज हवा के चलते झंडा फट गया है, जिससे देश के सम्मान का प्रतीक तिरंगा अपमानित हो रहा है।

पीपीगंज की खबर यह भी उजागर करती है कि जहां देश में पहलगाम आतंकी हमले के बाद हर नागरिक देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत है, वहीं दूसरी ओर नगर पंचायत पीपीगंज के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ रहे हैं। तिरंगे झंडे का अपमान भारतीय कानून के तहत राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है, फिर भी कोई कार्रवाई होती नहीं दिख रही।

स्थानीय नागरिकों में इस घटना को लेकर भारी रोष है। लोगों का कहना है कि अगर कोई आम नागरिक तिरंगे का अपमान करे, तो उस पर त्वरित कार्रवाई होती है, लेकिन यहां सरकारी लापरवाही को नजरअंदाज किया जा रहा है।

इस संबंध में जब अधिशाषी अधिकारी आञ्जनेय मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं यदि ऐसा है तो उसे तत्काल उतरवाकर रखा जाएगा और उसकी जगह पर दूसरे तिरंगे झंडे को लगाया जाएगा। अभी कुछ दिनों पूर्व में भी तिरंगा झंडा तेज हवा के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था जिसे बदलवाकर नया झंडा लगाया गया था।

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गोरखपुर में किसानों के लिए स्वरोजगार की नई राह, व्यवसायिक भेड़ बकरी पालन पर प्रशिक्षण संपन्न

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गोरखपुर/ महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र, चौक माफी (पीपीगंज) में व्यावसायिक भेड़ एवं बकरी पालन पर आधारित पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया। यह रोजगारपरक बकरी पालन प्रशिक्षण विशेष रूप से भूमिहीन किसानों, महिलाओं और नवयुवकों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ, जो कम लागत में अधिक लाभ कमाने का इच्छुक हैं।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य बकरी पालन व्यवसाय को एक स्थायी और लाभदायक स्वरोजगार के रूप में स्थापित करना था। कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विवेक प्रताप सिंह ने बताया कि बकरी पालन कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाला व्यवसाय है और छोटे व सीमांत किसानों के लिए यह आजीविका का सशक्त साधन बन सकता है।

डॉ. सिंह ने बताया कि यदि सही मार्गदर्शन मिले तो कम जगह में भी व्यावसायिक बकरी पालन शुरू किया जा सकता है। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों को बकरी पालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं जैसे कि नस्ल चयन, आहार प्रबंधन, स्वास्थ्य देखभाल और बाजार की मांग के अनुरूप उत्पादन के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

प्रशिक्षण के दौरान बताया गया कि बकरी की नस्लों का चयन करते समय इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि पालन का उद्देश्य दूध उत्पादन, मांस उत्पादन या दोनों है। भारत में उपयुक्त नस्लों जैसे जमुनापारी, बीटल, बारबरी, सिरोही आदि की चर्चा की गई। साथ ही, यह भी बताया गया कि नस्ल का चुनाव स्थानीय जलवायु के अनुकूल होना चाहिए।

आहार प्रबंधन पर विशेष जोर दिया गया। बकरियों के आयु वर्ग के अनुसार पोषण देना आवश्यक है। डॉ. सिंह ने बताया कि हरा चारा प्रबंधन और साइलेंज निर्माण जैसे उपायों से चारा पर होने वाले खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

बकरी पालन में जोखिम को कम करने के लिए सही प्रबंधन अनिवार्य है। इसमें नियमित टीकाकरण, साफ-सफाई, बीमारियों की पहचान और उपचार जैसी बातें शामिल हैं। बकरियों का व्यक्तिगत रिकॉर्ड रखना, जैसे आयु, वजन, टीकाकरण की तारीखें और प्रजनन की जानकारी, पालन को व्यवस्थित बनाने में सहायक होता है।

प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को अनुभवी बकरी पालक गयासुद्दीन सिद्दीकी के फार्म का भ्रमण कराया गया। उन्होंने बकरी पालन के सफल प्रयोगात्मक अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे उन्होंने इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमाया। उन्होंने बकरी पालन की बारीकियों और व्यावहारिक चुनौतियों के बारे में भी विस्तार से बताया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार सिंह ने बकरी पालन से आय सृजन की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यदि किसान सही तरीके से पालन करें तो यह लघु उद्यम एक लाखों की आय देने वाला व्यवसाय बन सकता है।

डॉ. अजीत कुमार श्रीवास्तव (उद्यान विशेषज्ञ) ने बकरियों के स्वास्थ्य से जुड़े घरेलू उपचार और देखभाल के पारंपरिक उपाय बताए, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से अपनाए जा सकते हैं।

कार्यक्रम के समापन पर कुल 40 प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। कार्यक्रम में केंद्र के डॉ. संदीप प्रकाश उपाध्याय, डॉ. अवनीश कुमार सिंह, डॉ. श्वेता सिंह, गौरव सिंह, जितेंद्र सिंह और शुभम पाण्डेय की सक्रिय भागीदारी रही।

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कैंपियरगंज और फरेंदा रेंज में सागौन के हरे पेड़ों की अवैध कटान, वन विभाग पर उठे सवाल

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गोरखपुर/ गोरखपुर जनपद के कैंपियरगंज रेंज के जंगल बिहुली बीट क्षेत्र में सागौन के हरे पेड़ों की अवैध कटान जोरों पर है। लकड़ी माफिया धड़ल्ले से बेशकीमती हरे पेड़ों को काट रहे हैं, जिससे इलाके की प्राकृतिक हरियाली को भारी नुकसान हो रहा है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पीपीगंज-बढ़या मार्ग के पास वार्ड नंबर 8 में कई सागौन के हरे पेड़ काटे जा चुके हैं। क्षेत्रीय नागरिकों का कहना है कि लकड़ी माफिया ने नया तरीका निकाल लिया है — वे दो-चार पेड़ काटने की परमिशन ले लेते हैं और उसके आड़ में दर्जनों सागौन के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चला देते हैं।

स्थानीय निवासियों ने वन विभाग को सूचित भी किया, लेकिन विभागीय अधिकारी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि परमिशन प्राप्त है। हालांकि, अगर मौके पर पहुंचकर जांच की जाए तो सच्चाई सामने आ सकती है। इससे स्पष्ट होता है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

इसी सप्ताह फरेंदा रेंज के अंतर्गत गिरधरपुर बीट क्षेत्र में भी ऐसी ही घटना सामने आई। वहाँ भी बेशकीमती सागौन के हरे पेड़ों की कटाई हुई। यह दर्शाता है कि पूरे गोरखपुर जिले में वन माफिया सक्रिय हैं और वन अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

जब इस पूरे मामले पर डीएफओ गोरखपुर विकास यादव से सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि फरेंदा रेंज में कटे हुए पेड़ों की लकड़ी को बरामद कर लिया गया है और लकड़ी माफिया के खिलाफ विधिक कार्यवाही चल रही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जंगल बिहुली बीट क्षेत्र में सिर्फ 10 सागौन के पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई है। यदि इससे अधिक पेड़ काटे गए हैं तो वन अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाएगी।

प्रशासन की निष्क्रियता और जनता की चिंता

स्थानीय लोग प्रशासन की निष्क्रियता से परेशान हैं। उनका कहना है कि यदि इसी तरह से हरे पेड़ों की कटाई होती रही तो क्षेत्र में पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ सकती है और आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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