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पीपीगंज में थाने की गाड़ी के टक्कर से युवक की मौत: पुलिस की लापरवाही पर उठे सवाल

गोरखपुर/ पीपीगंज, जसवल मार्ग पर भरोहीया गांव के पास गुरुवार की रात थाना की जीप की टक्कर से 27 वर्षीय युवक इंद्रजीत पासवान की मौत हो गई। मृतक युवक मटियारी का निवासी था और वह पीपीगंज से जसवल की तरफ जा रहा था। दूसरी ओर से जसवल से आ रही थाना की गाड़ी ने उसे अपनी चपेट में ले लिया, जिससे युवक गंभीर रूप से घायल हो गया। हादसे के बाद उसे एंबुलेंस के माध्यम से कौड़िया के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसकी गंभीर हालत को देखते हुए उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया। हालांकि, अस्पताल जाते हुए युवक ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
स्थानीय लोगों ने घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पुलिस कर्मी गाड़ी चला रहे थे और वे लापरवाही से वाहन चला रहे थे, जिसके कारण यह दुर्घटना घटी। पुलिस की कार्यशैली पर उठते सवालों के बीच इस घटना ने सुरक्षा मानकों और पुलिस गाड़ियों के संचालन को लेकर एक गंभीर बहस को जन्म दिया है। दुर्घटना के बाद पुलिस प्रशासन ने तुरंत मौके पर पहुंचकर स्थिति को संभालने की कोशिश की, लेकिन यह घटना पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर गई है।
स्थानीय निवासी और परिजनों का कहना है कि यदि पुलिस कर्मी अधिक सतर्कता बरतते तो यह दुर्घटना रोकी जा सकती थी। पुलिस की लापरवाही की आलोचना करते हुए, लोगों ने मांग की है कि पुलिस गाड़ियों के संचालन के दौरान सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन किया जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
इस हादसे ने क्षेत्रीय समुदाय में गहरा शोक छेड़ा है। इंद्रजीत पासवान की अचानक मौत ने उसके परिवार को गहरे दुख में डुबो दिया है। परिजनों का कहना है कि पुलिस प्रशासन को इस मामले में कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि अन्य लोगों के साथ ऐसा हादसा न हो।
इस घटना के बाद, स्थानीय लोग और संगठनों ने पुलिस की कार्यप्रणाली की समीक्षा करने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। साथ ही, यह घटना पुलिस गाड़ियों के संचालन और सड़क सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को भी सामने ला रही है, जिसे प्रशासन को गंभीरता से लेना चाहिए।
पीपीगंज क्षेत्र में हुई इस दुखद घटना ने पुलिस के रवैये और सुरक्षा उपायों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, और यह घटना भविष्य में पुलिस अधिकारियों के लिए एक चेतावनी बन सकती है।
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पीपीगंज रेलवे गुमटी किराया वृद्धि से व्यापारियों में उबाल, सांसद रवि किशन से हस्तक्षेप की मांग

गोरखपुर/ पीपीगंज कस्बे में स्थित रेलवे गुमटी के किराए में हालिया वृद्धि ने व्यापारियों के बीच भारी नाराजगी और आक्रोश का माहौल पैदा कर दिया है। रेलवे प्रशासन द्वारा अचानक सर्किल रेट का 10% जोड़ने, 18% जीएसटी लागू करने और हर साल 6% की नियमित वृद्धि का निर्णय व्यापारियों पर बड़ा आर्थिक बोझ बन गया है।
इस नये नियम से न केवल किराया कई गुना बढ़ जाएगा, बल्कि छोटे और मध्यम स्तर के दुकानदारों के सामने व्यवसाय चलाने की बड़ी चुनौती भी खड़ी हो जाएंगी।
स्थानीय व्यापार मंडलों और दुकानदारों का कहना है कि महंगाई के इस दौर में जब पहले से ही लागत और खर्चे बढ़ते जा रहे हैं, रेलवे का यह कदम पूरी तरह से असंवेदनशील और अन्यायपूर्ण है।
एक दुकानदार ने बताया,
“पहले ही कई तरह के टैक्स और आर्थिक दबाव झेल रहे हैं। अब अगर दुकान का किराया इतना बढ़ा दिया जाएगा तो हम दुकान बंद करने को मजबूर हो जाएंगे।”
व्यापारियों ने इस मुद्दे को लेकर रेलवे प्रशासन से जल्द बातचीत करने की योजना बनाई है। साथ ही विरोध प्रदर्शन की भी रणनीति तैयार की जा रही है। पीपीगंज व्यापार मंडल सहित कई संगठनों ने मिलकर किराया वृद्धि को वापस लेने या इसे व्यावहारिक दर पर लाने की मांग की है।
स्थानीय नेताओं और व्यापारिक प्रतिनिधियों का कहना है कि रेलवे प्रशासन को व्यवसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील निर्णय लेना चाहिए।
इस गंभीर मुद्दे को लेकर व्यापारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने सदर सांसद रवि किशन शुक्ला से मुलाकात की और उन्हें स्थिति से अवगत कराया।
सांसद ने व्यापारियों को भरोसा दिलाया कि वह इस मुद्दे को रेल मंत्रालय और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के समक्ष गंभीरता से रखेंगे। उन्होंने कहा,
“व्यापारियों के हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी। मैं रेल मंत्रालय से बात कर समाधान निकालने का पूरा प्रयास करूंगा।”
अब तक रेलवे प्रशासन की ओर से इस पूरे मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। इससे व्यापारियों में और अधिक निराशा और गुस्सा व्याप्त है।
स्थानीय लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि बिना पूर्व सूचना और चर्चा के इस प्रकार किराया बढ़ाना अनुचित है।
इस मुद्दे पर न केवल व्यापारी बल्कि स्थानीय नागरिक भी उनके समर्थन में आ गए हैं। क्षेत्र के कई सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने भी व्यापारियों के साथ खड़े होने की बात कही है।
लोगों का कहना है कि यदि रेलवे ने जल्द कोई कदम नहीं उठाया तो बड़ा आंदोलन शुरू हो सकता है।
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी सार्वजनिक उपयोग की संपत्ति पर अचानक बड़ा शुल्क लागू करना स्थानीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
विशेष रूप से ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में छोटे व्यापारियों के लिए ऐसी नीतियां व्यवसायिक अस्थिरता का कारण बन सकती हैं।
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विद्युत सेवा महा अभियान के तहत कैम्पियरगंज में 21 व 22 जुलाई को फिर लगेगा मेगा कैम्प

गोरखपुर / मुख्यमंत्री एवं ऊर्जा मंत्री के निर्देशानुसार विद्युत उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए विद्युत सेवा महा अभियान के तहत विद्युत वितरण खण्ड कैम्पियरगंज में 17 से19 जुलाई 2025 तक मेगा कैम्प का आयोजन किया गया। उपभोक्ताओं की सुविधा को देखते हुए यह विशेष शिविर अब 21 और 22 जुलाई को भी खण्ड कार्यालय कैम्पियरगंज में प्रातः 10 बजे से सायं 5 बजे तक आयोजित किया जाएगा।
इस महा अभियान का उद्देश्य उपभोक्ताओं के गलत बिजली बिलों का संशोधन, भार वृद्धि, नये संयोजन, विधा परिवर्तन तथा अन्य बिजली से जुड़ी समस्याओं का त्वरित समाधान करना है। 19 जुलाई को आयोजित शिविर में बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं ने भाग लिया और अपनी शिकायतें दर्ज कराईं।
कैम्प के तीसरे दिन, कुल 131 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें:
- बिल संशोधन की 95 शिकायत पत्र,
- नये विद्युत संयोजन की 8 मांगपत्र,
- भार वृद्धि की 9 प्रार्थनापत्र
- विधा परिवर्तन की 6 समस्याएं,
- अन्य विद्युत संबंधित कार्यों से जुड़ी 13 शिकायतें शामिल रहीं।
विद्युत वितरण खंड कैम्पियरगंज के अधिशाषी अभियंता दिनेश कुमार ने जानकारी दी कि प्राप्त सभी शिकायतों का पंजीकरण कर लिया गया है और नियमानुसार 7 दिनों के भीतर उनका समाधान सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि अभियान का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को निर्बाध और पारदर्शी सेवा देना है।
कैम्प में उपस्थित अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने उपभोक्ताओं की समस्याओं को गंभीरता से सुना और समाधान की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी। इस पहल से स्थानीय उपभोक्ताओं को काफी राहत मिलने की उम्मीद है।
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सीएचसी कैंपियरगंज की संविदा महिला कर्मचारी पर गंभीर आरोप, निजी आवास पर कर रही गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी, वायरल वीडियो ने खोली पोल

गोरखपुर/ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद के सीएचसी कैंपियरगंज में तैनात एक संविदा महिला स्वास्थ्यकर्मी पर गंभीर आरोप सामने आए हैं। आरोप है कि वह अपने निजी आवास पर गर्भवती महिलाओं का इलाज और प्रसव करवा रही है। इतना ही नहीं, वह आशा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर प्रसव की व्यवस्था भी करती है, और जब मामला जटिल होता है, तो मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर करने का भी काम करती है। हाल ही में इस महिला कर्मचारी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वह एक गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए अपने आवास पर ले जाती हुई दिख रही है। (समर एक्सप्रेस इस वायरल वीडियो की पुष्टि नहीं करता है।)
प्राप्त जानकारी के अनुसार, उक्त महिला कर्मचारी की नियुक्ति सीएचसी कैंपियरगंज के पीकू वार्ड में की गई है। लेकिन वह अपनी अटेंडेंस सरकारी अस्पताल में लगाकर, अधिकतर समय निजी आवास पर मरीजों को देखती है। यह आवास भी विवादों में घिरा हुआ है, क्योंकि यह आवास उसकी मां के नाम पर आरक्षित था, जो कि अब सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। इसके बावजूद यह महिला कर्मचारी अभी भी सरकारी आवास पर काबिज है और वहीं से स्वास्थ्य सेवाएं संचालित कर रही है।
इस पूरे प्रकरण ने स्वास्थ्य विभाग के नियमों और उसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। संविदा पर तैनात कर्मचारी द्वारा इस प्रकार से निजी प्रैक्टिस करना न सिर्फ नियमों के खिलाफ है, बल्कि इससे मरीजों की जान को भी खतरा हो सकता है। खासतौर पर जब प्रसव जैसी संवेदनशील प्रक्रिया को बिना समुचित संसाधनों और मेडिकल निगरानी के निजी जगह पर अंजाम दिया जा रहा हो।
जब इस पूरे मामले में सीएचसी कैंपियरगंज के अधीक्षक डॉ. विनोद वर्मा से जानकारी ली गई तो उन्होंने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि “मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। अगर जांच में आरोप सही पाए जाते हैं तो संबंधित के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाएगी।” उन्होंने यह भी स्वीकारा कि यदि किसी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है, तो स्वास्थ्य विभाग इस पर सख्त कदम उठाएगा।
वहीं अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा मरीजों को बाहर की दवा लिखने की बात भी सामने आई है। जब इस विषय में सवाल पूछा गया तो अधिकारी टालमटोल करने लगे और स्पष्ट जवाब देने से बचते नजर आए। इससे यह संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं अस्पताल प्रशासन पारदर्शिता और जवाबदेही के मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं किस कदर लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं। एक संविदा महिला स्वास्थ्यकर्मी द्वारा निजी आवास पर डिलीवरी कराना और सरकारी सुविधाओं का दुरुपयोग करना, स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। यदि इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई नहीं की जाती, तो यह भविष्य में और गंभीर परिणाम दे सकता है।
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